जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके किसी काम की नहीं है. (बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर)
एक महान विधिवेत्ता, सामाजिक सुधारक और हमारे भारतीय संविधान के शिल्पी डॉ. भीमराव अंबेडकर का आज महापरिनिर्वाण दिवस है. आज ही के दिन वर्ष 1965 को बाबा साहेब पंचतत्वों में विलीन हुए थे. भारत के संविधान के रचियता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर इतिहास का एक ऐसा नाम है, जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है. आजाद भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री के रूप में उन्होंने भारतीय गणराज्य की स्थापना की थी, आज उन्हीं के कारण भारत में लोकतंत्र को सर्वोच्च तंत्र माना जाता है. स्वयं महार जाति में जन्में बाबा साहेब को लंबे समय तक सामाजिक उत्पीडन का सामना करना पड़ा, लेकिन इस सामाजिक दोराव के बावजूद उन्होंने अपने आगे बढ़ते क़दमों को कभी नहीं रोका. आज बाबा साहेब एक प्रेरणा, एक आदर्श और एक सिद्धांत के रूप में हमारे हृदयों में जीवित हैं और उनके महापरिनिर्वाण दिवस पर ऐसे महापुरुष को मैं शत शत नमन करता हूं.
वर्तमान में जहां आज भी दलितों को उनके अधिकारों के लिए जूझना पड़ता है, आये दिन हम सभी के सामने कोई न कोई ऐसी घटना आ जाती है जो हमें सोचने पर विवश कर देती है कि सामाजिक असमानता का देश में स्थान ही क्यों है? तो सोचिये 129 वर्ष पूर्व बाबा साहेब का जीवन कैसा रहा होगा. 14 अप्रैल, 1891 में मध्यप्रदेश के महू में जन्में बाबा साहेब श्री रामजी मालोजी सकपाल और माता भीमाबाई की चौदहवीं संतान थे, बचपन से ही प्रतिभाशाली व्यक्तित्व और प्रखर बुद्धिवान यह बालक समाज की अवहेलना और भेदभाव देखते हुए पला बढ़ा. मूल रूप से कोंकण के अंबाडवे गांव के निवसी होने के कारण उनके पिता ने स्कूल में उनका सरनेम "अंबाडवेकर" लिखवाया था. वहीं शिक्षा के प्रति उनकी लगन और निष्ठा को देखते हुए उनके एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर को उनसे विशेष स्नेह था, जिसके चलते ही उन्होंने अपना सरनेम बदलकर अंबेडकर कर लिया था.
एक युवा के रूप में बाबा साहेब ने दलितों के उत्थान, सामाजिक एकता और छुआछूत के कलंक से देश को बचाने के लिए लम्बी लडाई लड़ी, जिसके कारण ही आज दलितों को समाज में समानता का अधिकार प्राप्त है, उन्होंने देश में लोकतंत्र की स्थापना के साथ साथ उन वंचित तबकों के लिए आरक्षण का भी प्रावधान रखा, जो समाज की प्रगति में कहीं पीछे रह गए थे. इस तरह बाबा साहेब एक मिसाल हैं हम सभी के लिए कि हम देश में सभी को समान मानकर चले और धर्म, जाति, संप्रदाय के आधार पर भारत को तोड़े नहीं अपितु एकसूत्र में पिरोकर विश्व गुरु के तौर पर देश को स्थापित करें. यही बाबा साहेब जैसे भारत माता के सच्चे सपुत्र को हमारी श्रृद्धांजलि होगी. आप सभी राष्ट्रवादी भाई, बहनों से मेरा निवेदन है कि आप भी बाबा साहेब के मार्ग-निर्देशन में चलते हुए राष्ट्र उन्नति में अपना सर्वोच्च योगदान अंकित करें.
साभार
शिव प्रताप सिंह पवार